बचपन में जो भी कुछ सोचा था वो कुछ हद तक पा लिया है । क्या कुश रहने के लिए materialistic चीज़ो की जरुरत होती है ? बचपन मै सोचा था बस एक 25000 हज़ार रुपियो वाली जॉब होगी , घर से office जाएंगे , दफ्तर से श्याम को लौट कर घर । घर पर माँ ने आज फिर वो सब्जी बनायीं होगी जो तुम्हे पसंद नहीं है , खैर आज तुम्हारे भाई का दिन है कल तुम्हारा होगा । आज वो 25000 हज़ार रुपियो वाली जॉब तो हैं लेकिन घर नहीं है , माँ पास नहीं है , माँ की बनाई हुई वो तुम्हे ना पसंद सब्ज़ी नहीं है । दफ्तर से लौट कर कही तो जाता हु, उसे definitely घर तो नहीं बोल सकते, कुछ तो है ।
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